9.28.2007

उठो लाल अब आंखें खोलो

Today morning I was woken up by my dad with the following poem; well just the first two lines. I "googled" the rest !

"उठो लाल अब आंखें खोलो
पानी लाई हूँ मुँह धोलो

बीती रात कमल-दल फूले
उनके ऊपर भँवरे झूले

चिड़िया चहक उठी पेड़ों पर
बहने लगी हवा अति सुन्दर

भोर हुइ सूरज उग आया
नभ में हुई सुनहरी काया

आसमान में छाई लाली
हवा बही सुख देने वाली

नन्ही-नन्ही किरनें आयें
फूल हँसे कलियाँ मुस्कायें

इतना सुन्दर समय ना खो
मेरे प्यारे अब मत सो"

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